हर विषय का देखो इंसान को कैसा ज्ञान है, इन्हीं विषयों में सिमटा यह सारा जहान है।।
यह ‘गणित’ भी देखो कैसा विषय अजीब है, दो दूनी दो सौ की ‘गणित’ में उलझा हर जीव है।।
दो दूनी दो सौ तो इंसान नहीं कर पाता है, इसी ‘गणित’ पर लाट्री, फीचर, सट्टों में पैसा जरूर गवां आता है।।
अरे बेअक्ल यह अंकों का खेल सब मायाजाल है, इसमें फंस कर इंसान होता राजा नहीं, कंगाल है।।
‘इतिहास’ विषय पढ़कर उसे इंसान दोहरा रहा है, अपने ही हाथों अपना ‘इतिहास’ बना रहा है।।
कोख में मादा की आहट सुनते ही घबरा जाता है, फटाफट देर न कर उसे ही ‘इतिहास’ बना आता है।।
अरे मूर्ख यह मादा नहीं होगी तो तू कहॉं जायेगा, जब पेड़ नहीं होगा तो फल कहॉं से आयेगा।।
हर इंसान का अपना ही अलग ज्ञान है, और इसी से बनता विषय ‘विज्ञान’ है।।
सब्जी को ‘आक्सीटोन’ और फलों को ‘कारबाईड’ से पकाता है, घर-घर में इंसान अपनी ही प्रयोगशाला बनाता है।।
नित् नये प्रयोग हम पर करता यह अज्ञान है, अरे रहमकर, हम ‘गिनीपिग’ नहीं इंसान हैं।।
अब आता यह बड़ा ही बेदर्द ‘भूगोल’ है, मगर इसमें भी इंसान की अक्ल पूरी गोल है।।
अपनी सुविधा से यह सारा ‘भूगोल’ बनाता है, जहॉं भी जाता है, वहीं का ‘भूगोल’ बदल आता है।।
अरे मूर्ख तू नहीं कर प्रक्ति के कार्य में दखल, प्रक्ति द्वारा प्रद्यत राहों को यों ही नहीं बदल।।
हे नादान मानव, मत कर तू अपनी मनमानी बंद कर मानवता और प्रकृति के साथ छेड़खानी।।
यह सारी छेड़खानी तुझे बहुत ही ज्यादा मंहगी पड जायेगी, शायद तेरी कहानी भी इतिहास में ‘डाईनोसर’ की तरह लिख जायेगी !!