भोले भाले गर्ग साहब

एक बार जोधपुर के
फर्नीचर व्यवसायी Garg साहब
अपने मित्र के
आमंत्रण पर दिल्ली गए।

एक शाम वह अकेले ही एक बार में पहुंचे,

बीयर की एक बोतल ली
और बार के एक कोने में
पड़ी टेबल पर जाकर बैठ गये।

उनकी टेबल के पास
एक कुर्सी और थी जो खाली थी।

कुछ देर बाद एक सुंदर सी युवती
उनके पास आकर रुकी ।

उसने अंग्रेजी में Garg साहब से
कुछ कहा जो उन्हें समझ में नहीं आया।

Garg साहब ने उसे बैठने का इशारा किया ।

Garg साहब ने अपनी टूटी फूटी अंग्रेजी में
उससे बात करने की कोशिश की
पर बेकार।

वे दोनों ही एक दूसरे की
बात समझ नहीं पा रहे थे।

आखिर Garg साहब ने एक कागज पर
बीयर के गिलास का चित्र बनाकर
उसे दिखाया जिसे देखकर
उसने हां में सिर हिलाया।

Garg साहब समझ गए कि लड़की
बीयर पीना चाहती है।

उन्होंने उसके लिए भी
एक बीयर का आर्डर कर दिया।

पीना खत्म होने के बाद
Garg साहब ने एक और कागज पर
खाने से भरी प्लेट का चित्र
बनाकर उसे दिखाया।

उसने फिर हां में सिर हिलाया
और Garg साहब ने खाने का
आर्डर भी कर दिया।

खाना खाने के बाद,

युवती ने एक कागज लिया।
उस पर पलंग का चित्र बनाकर
वह Garg साहब को दिखाकर मुस्कराई ।

Garg साहब ने चकित होते हुए
उसके जबाब में हां में सिर हिलाया
और बिल चुकाकर चला आया।

इस बात को 15 साल हो गये,

आज तक Garg साहब को
यह समझ में नहीं आया
कि लड़की ने कैसे जाना कि…

वह फर्नीचर का कारोबार करते हैं…?

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