जो ब्रो या जानेमन टाइप लोग 5G फोन पर नज़रें टिकाए हैं, उनके लिए
इस साल कोई भी ऐसा फोन मत लीजिए। खूब विज्ञापन आएँगे, बड़े वादे किए जाएँगे, और आपको लगेगा कि बिना 5G के ज़िंदगी झंड है। लेकिन, फोन मत लीजिएगा। इस तकनीक के आपके हाथों में आने और बेहतर सर्विस दे पाने में दो-तीन स्तर पर बड़ी समस्याएँ हैं।
जब कोई नई टेक्नॉलॉजी आती है, तो उसके कई आयाम होते हैं। खासकर तब जब उन्हें पब्लिक के इस्तेमाल के लिए लाना होता है। बैकएंड इन्फ़्रास्ट्रक्चर और इनहैंड डिवाइस के भीतर की तकनीक। 5G की हवा पिछले छः महीने से खूब ज़ोर पकड़ रही है। लोग 4G स्पीड से उदास चल रहे हैं। हमारे आँखें 4K रेजॉल्यूशन में नहीं देखतीं, लेकिन हमें वो भी फोन पर चाहिए। हाँ, स्क्रीन बहुत बड़ी हो तब उसका फ़र्क़ पता चलता है, फोन और लैपटॉप या सामान्य साइज के टीवी में नहीं।
फोन का स्क्रीन इतना छोटा होता है कि 1080p तो छोड़िए 720p भी बहुत क्लियर दिखता है। लेकिन हम यूट्यूब पर 1080p ही सेलेक्ट करते हैं। क्यों करते हैं, पता नहीं। हाँ, वही विडियो आप लैपटॉप पर देखेंगे तो आपको 720p और 1080p में फ़र्क़ पता चल जाएगा। उसी को 32 इंच पर देखेंगे तो थोड़ा और अंतर दिखेगा। लेकिन उसी टीवी पर 1080p और 4K में अंतर पता नहीं चलेगा। इसका सीधा कारण है कि जिस डिवाइस पर आप टेक्नॉलॉजी का उपभोग कर रहे हैं, उसकी क्षमता सीमित है। जैसे कि आपको IMAX के नाम पर 4K प्रिंट दिखाकर दुगुना पैसा ले लेते हैं सिनेमा वाले।
जैसा कि मैंने कहा कि डिवाइस और टेक्नॉलॉजी का सामंजस्य बहुत ज़रूरी है किसी भी प्रोडक्ट की सफलता के लिए। आप और हम बेहतर जानते हैं कि अब 4G ढलान पर है, लेकिन अभी भी स्पीड और निरंतरता की बात करें तो हर कम्पनी आपको लगातार 1mbps स्पीड भी नहीं दे पा रही। मतलब, टेक्नॉलॉजी अपने बेहतरीन स्तर पर पहुँच कर भी उपभोक्ता को बेहतरीन अनुभव नहीं दे रही। क्यों? क्योंकि इसमें यूज़र्स की संख्या, फोन की क्वालिटी से लेकर आपके एरिया में लगे टावर इसको प्रभावित करते हैं।
अब 5G की बात करते हैं जिसमें कहा जाता है कि इंटरनेट स्पीड में ‘थ्योरेटिकली’ सौ-गुणा बेहतरी आएगी। पिछली टेक्नॉलॉजी ‘4G LTE से सौ गुणा बेहतर स्पीड’ सुनने में बहुत ग़ज़ब लगती है लेकिन आने वाले दो साल तक ये संभव नहीं है। थ्योरेटिकली का मतलब है कि आपके फोन में बेहतरीन एंटेना है, आपके फोन और टावर के बीच साफ मौसम और हवा है, और आप एक जगह खड़े होकर फोन चला रहे हैं।
4G की तरंगें दीवारों, पेड़ों, बारिश, तूफ़ान आदि से बहुत ज़्यादा प्रभावित नहीं होती। होंगी भी, तो इन सबके एक्सट्रीम होने पर। जैसे कि टावर टूट गया, दीवारों की मोटाई बहुत ज़्यादा हो, घने जंगल हैं और टावरों की संख्या कम है। ऐसे में ही ये तकनीक सही तरीके से काम नहीं करेगी, लेकिन आम माहौल में, आपकी न्यूनतम ज़रूरतों को पूरा कर देंगी। इसमें फोन, मैसेज और ठीक-ठाक स्पीड का इंटरनेट शामिल है।
5G के साथ ये सारी समस्याएँ हैं कि अगर आपके डिवाइस और टावर के बीच दीवार, पेड़ (जंगल भी नहीं), छत, बारिश, कोहरा, बर्फ़ आदि आ जाए तो ये न्यूनतम ज़रूरतें भी पूरी नहीं हो पाएँगी। यहाँ तक कि आपके और टावर के बीच में कोई व्यक्ति भी आ जाए तो भी क्वालिटी पर फ़र्क़ पड़ता है। मतलब, आपके फोन/डिवाइस और टावर के बीच में जितना कम अवरोध हो, उतना बेहतर है। ये इसलिए होता है क्योंकि 4G के मुक़ाबले इनके सिग्नल की रेंज कम और पेनिट्रेशन कमज़ोर होती हैं।
इसके बाद एक और नौटंकी है, वो यह कि आपने अगर फोन को सही तरीके से नहीं पकड़ा है, तो एंटेना के ढक जाने से सिग्नल में अवरोध उत्पन्न होगा और आपके काम पर असर पड़ेगा।
तो इसका उपाय क्या है? उपाय जो हैं, उस पर अमल करने में समय भी लगेगा, धन भी। पहला उपाय है कि शहर में टावरों का जाल बिछा दिया जाए। इतने टावर और इतनी कम दूरी पर जैसे सड़कों के किनारे के पोल। इसमें शहर के बीच में खड़े बहुत ऊँचे और बड़े टावर काम नहीं आते, इसमें कई टावरों को व्यवस्थित तरीके से लगाना होता है।
दूसरा उपाय है कि आपके फोन में एंटेना दो से चार जगह पर हों ताकि आप उन्हें कहीं से भी पकड़ें, उस पर प्रभाव न पड़े। आईफोन 4 के साथ ‘एंटेनागेट’ शायद याद होगा सबको जब खास तरीके से फोन पकड़ने पर सिग्नल कमज़ोर हो जाते थे। इसके लिए फोन के अंदर जो प्रोसेसर और मोडेम होंगे, उनसे जुड़े एंटेना आदि पर ज़्यादा ख़र्च आएगा। जिसका मतलब है कि एक नॉर्मल 5G फोन, पिछले 4G फोन से लगभग ₹10-20000 तक महँगा हो जाएगा।
ऐसा नहीं है कि यही दो तरीके हैं। लेकिन अभी के समय की सच्चाई यही है कि इसके अलावा और कोई तरीक़ा नहीं है कि आपके डिवाइस तक ‘सीमलेस’ (बिना किसी समस्या के) इंटरनेट और कॉल की सुविधा पहुँचे। 5G के कारण एक साथ कई डिवाइस एक दूसरे से जुड़े रहेंगे, सूचनाओं का आदान-प्रदान बहुत तीव्र गति से हो पाएगा, ज़्यादा हैवी फाइल्स भेजी जा सकेंगी।
सबकी जड़ में दो मूलभूत समस्याएँ हैं जो ऊपर बताई मैंने। आने वाले समय में इसका भी तोड़ निकाल लिया जाएगा, और किसी दूसरी तकनीक के ज़रिए बिना कॉस्ट बढ़ाए, बिना टावरों के जाल के (जिससे रेडिएशन का ख़तरा होता है) टेलीफ़ोनी और इंटरनेट की सुविधा हमें मिलेगी। लेकिन, अभी वो समय नहीं है।
भारत में तो अगले साल के अंत तक 5G मेनस्ट्रीम हो पाएगी, क्योंकि यहाँ अभी भी हर जगह 4G स्पीड भी सही नहीं है। यहाँ डेटा बहुत सस्ता है, दुनिया में सबसे सस्ता। और नए इन्फ़्रास्ट्रक्चर के लिए उसके दाम पर भी प्रभाव पड़ेगा। तो, डेटा रेट भी बढ़ेगा, डिवाइस के दाम भी।
घर का ब्राडबैंड या आपके स्मार्ट टीवी तक जो तार वाला इंटरनेट कनेक्शन है, उसकी स्पीड में बहुत तेज़ी आएगी और 4K कंटेंट भी आप आसानी से देख पाएँगे। लेकिन फोन पर 5G वैसा नहीं होगा। अभी की स्थिति देखते हुए स्पीड में दो से ढाई गुणा तेज़ी आएगी (जो कि बहुत ज़्यादा है) और, जो लेटेंसी की प्रॉब्लम होती है, कि आपने क्लिक किया और साइट खुल गई, वो बहुत, बहुत, बहुत कम हो जाएगी। इससे स्थिति बहुत सुधरेगी, परंतु उसके लिए इन्फ़्रास्ट्रक्चर चाहिए।
इसलिए, अगर आप 5G फोन के इंतज़ार में हैं, तो मत कीजिए। फोन की लाइफ़ वैसे भी साल-दो साल होती है। अगर फोन पर आपकी ज़रूरत विडियो देखने, फेसबुक करने तक ही सीमित है तो फर्जी का ‘4K कंटेंट आएगा यार’ के चक्कर में पैसा बर्बाद मत कीजिए। पहली बात कि फोन पर 1080p (full HD) से ज़्यादा आपकी आँखें देख नहीं सकतीं क्योंकि पिक्सेल का साइज़ उतनी छोटी स्क्रीन पर अपनी अंतिम सीमा तक जा चुका होता है। दूसरी बात, भारत में 2020 के अंत तक भी 5G के लिए समुचित तैयारियाँ होती नहीं दिख रहीं।