ANCHAHI

मैं तो अपने परमपिता परमात्मा के आँगन में खेल रही थी| वहां ना तो कोई भेदभाव था, ना कोई देह थी, और ना कोई गम था|

तुम्हारे प्रणय के परिणामस्वरूप ही मैं तुम्हारे यहाँ आई थी, मगर भ्रूण की जांच में मेरे मादा होने की खबर से तुम दोनों इतना घबरा गए, की बिना देरी करे मुझसे तुम छुटकारा पा आये|

मेरी होने वाली ‘भूतपूर्व माँ’, तुम भी तो चार बहनें थीं| तुम्हारे माँ-बाप ने तो बेटे की चाहत में तुम्हें गर्भ में आने के बाद, तुमसे छुटकारा नहीं पाया था? उन्होंने तो तुम्हें बेहतर से बेहतर शिक्षा दिला कर तुम्हें प्रोफेसर बनाया था|

एक बात बताऊँ, तुम मुझ से छुटकारा पाने का निर्णय लेते वक्त कोई बेबस अबला नहीं थीं, असल में तुम्हारे दिल की गहराई में भी बेटे की माँ बनने की स्त्री सुलभ चाहत भरी हुई थी|

मेरे होने वाले ‘भूतपूर्व जनक’, तुमसे क्या कहूँ| मुझसे छुटकारा पाने में तुम भी बराबर के सहयोगी थे| तुम तो कानूनी सलाहकार हो, जरा तुम मुझे सलाह दो की तुम्हारे विरुद्ध, मैं कौन सी धारा के अंतर्गत मुक़द्द्मा दायर करूँ?

तुम कोई लाचार या गरीब बाप नहीं थे, जोकि मुझे पाल नहीं सकते थे| मुझे पता है की अपने मुवकिलों से तुम कितनी फीस वसूलते हो, चाहें उसे देने में उनके घर-वार ही बिक जाएँ, मगर तुम अपनी फीस में जरा भी रियायत नहीं करते हो|

दरअसल आदिम सोच के चलते तुम भी पुत्रवत संतान के पिता बन कर उसे अपनी सम्पूर्ण विरासत सौपना चाहते थे|

तुम्हे पता नहीं है की मुझसे छुटकारा पाने के लिए मुझे दी गयी चंद पल की पीड़ा मेरे लिए उतनी तकलीफदेह नहीं थी, बजाये उस अकल्पनीय पीड़ा के जो मुझे आगे चलकर तुम्हारे यहाँ ‘अनचाही’ के रूप में आने के बाद जीवन भर झेलनी पड़ती|

मगर मेरी होने वाली ‘भूतपूर्व माँ’, तुम्हें एक बात बतानी है की तुम्हें अभी पता नहीं है की मुझसे छुटकारा पाने की क्रिया के दौरान पहुंची हुई अंदरूनी क्षति के चलते, अब तुम आगे फिर माँ बनने के काबिल नहीं रही हो|

शायद मुझ ‘अनचाही’ से छुटकारा पाने के लिए मुझे दी गयी चंद पल की पीड़ा अब तुम दोनों को जीवन भर सताएगी| मेरा क्या बिगड़ा, मैं ‘वैदेही’ तो अब भी अपने परम पिता परमात्मा के आँगन में मौज से खेल रही हूँ|

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